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एक जमाना लेकर रहते हैं,
ऐसे दरख्त होते हैं आस पास ।
जब भी नज़र आते हैं ,
ढेरों कहानियों को जीवंत कर देते हैं।
विशाल होते हुए भी ,
इन्हें कोई घमंड नहीं होता।
देखा होता है इन्होनें ,
सारी जमीं, सारा आसमां।
हर राहगीर को देते हैं छाया,
चाहे उन्होने हो काटा या सींचा।
छोटे पौधों को पनपने देते हैं,
खुशियां बांटने के आदी हो चुके होते हैं।
खुद की टहनीयों को भी,
कुल्हाड़ी बन खुद को काटते देखा ।
फिर भी हर बार की तरह,
हंसते हुए मिलते हैं ये सब से ।
तरूणाई में खूब झूमते हैं ये ,
शायद खुशफहमी के शिकार होते हैं।
धीरे धीरे वक्त के साथ ,
ये सीख जाते हैं गंभीर बने रहना ।
कितनी बार ही इनको ,
झेलनी पड़ती है हजारों चोटें।
कभी घरों को बनाने के लिए ,
तो कभी सर्द रातों को तपाने के लिए।
खुद कटकर कभी बन जाते हैं,
ये ख
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