
एक जमाना लेकर रहते हैं,
ऐसे दरख्त होते हैं आस पास ।
जब भी नज़र आते हैं ,
ढेरों कहानियों को जीवंत कर देते हैं।
विशाल होते हुए भी ,
इन्हें कोई घमंड नहीं होता।
देखा होता है इन्होनें ,
सारी जमीं, सारा आसमां।
हर राहगीर को देते हैं छाया,
चाहे उन्होने हो काटा या सींचा।
छोटे पौधों को पनपने देते हैं,
खुशियां बांटने के आदी हो चुके होते हैं।
खुद की टहनीयों को भी,
कुल्हाड़ी बन खुद को काटते देखा ।
फिर भी हर बार की तरह,
हंसते हुए मिलते हैं ये सब से ।
तरूणाई में खूब झूमते हैं ये ,
शायद खुशफहमी के शिकार होते हैं।
धीरे धीरे वक्त के साथ ,
ये सीख जाते हैं गंभीर बने रहना ।
कितनी बार ही इनको ,
झेलनी पड़ती है हजारों चोटें।
कभी घरों को बनाने के लिए ,
तो कभी सर्द रातों को तपाने के लिए।
खुद कटकर कभी बन जाते हैं,
ये खिड़किया, दरवाजे, कुर्सी ।
अपने फलो फूलों को भी,
ये अपने लिए नहीं रखते कभी।
देखा होता है दरख्तों ने,
ना जाने कितने ही,
रिश्तों को बनते बिगड़ते,
बागबान को तरखान बनते ।
पतझड़ सावन ,
देखे होते हैं सारे मौसम,
हर परिस्थितियों का सामना करते हुए,
धीरज-साहस नहीं खोते।
वक्त के साथ इनकी ,
जड़े गहरी होती जाती हैं।
जो बिखरने नही देती,
हिमालय को किसी भी आपदा में।
हर जख्म को एक सीख समझते,
हमेशा शांत खड़े रहते हैं।
बहुत कुछ बोलते हैं ये,
अंदर एक सैलाब रोके रखते हैं ।
होते हैं कुछ लोग हमारे आस पास,
कुछ जाने पहचाने कुछ अनजाने।
होते हैं दिल के साफ और मुलायम,
आंखों से ही ये सब कुछ कहते।
इस जहां को बचाने के लिए,
इन्हे सहेज कर रखना होता है।
भूस्खलनों से बचने के लिए,
इन्हे प्रेम से सींचना होता है।
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