हजारों साल पहले हमने ढूंढा,
कुछ अपने जैसे हाड़-मांस को,
जो लिपटे हुए थे चिथड़ों में,
गंदगी में सने हुए कुछ जिस्मों को ।
सिंहासनों पर बैठे हुए हमने देखा,
उन निकृष्ट जीवों को ,
जिनके गुजरने जाने से,
सभ्यताएं दूषित होती रहीं ।
इनको दिया एक विशेषण "अछूत",
जकड़ दिया अनगिनत बेड़ियों से,
साथ उठने-बैठने से,
एक ही हवा में सांस लेने से ।
फरमान सुनाये गये इन जीवों को,
वीरानों में जाने के लिए,
एक अलग दुनिया बसाने के लिए,
इजाजत दी गई महलों के मैले साफ करने की ।
जब ये गुजरते आस-पास,
नगाड़े बजाये गये ,
ताकि ये औरों को दूषित ना कर सकें,
ये ना बना सकें अपने जैसे औरों को ।
धीरे-धीरे इन जीवों ने अपना लिया,
तिरस्कार से भरा अपनापन,
अपना लिया भीख में मिली सांसें,
ताकि देख सकें हड्डियों को राख होते हुए ।
इनको तोहफों में दिए गये,
सड़ते हुए अनाज और पकवान ,
खैरात में बांट दी गई कुछ गज जमीनें,
जहां ये बोते रहे कंटीली झाड़ियां ।
नतमस्तक रहते हुए हमेशा,
सम्भालते रहते सड़ते हुए शरीर को,
ढकते रहे अपने चिथड़ों से,
अपनी औरतों और बच्चों को।
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