
सिया- क्या तो फिर आप मेरे घर क्यों आए हों अच्छा मेरी सेलरी काटने के लिए यही देखने की मैं सच मे बीमार हूँ या नहीं अगर नहीं तो आप मेरी सेलरी काट लोगे
अभिषेक- अपना हाथ अपने सिर पर मारता है हे भगवान कितना बोलती हैं ये लड़की
पूजा- हे सिया तू 2 मिनिट चुप नहीं रहा सकती क्या, अभिषेक सर आप कुछ लोगे पानी, चाय, कॉफ़ी
पूजा की बात सिया बीच में काटती है
सिया- कोई जरूरत नहीं है इन्हें कुछ पूछने की यहां ये कोई महान काम करने नहीं आए हैं ये तो मेरी सेलरी काटने के लिए यहां आए हैं
अभिषेक- जितना मुह चलाती हो उसका बस एक पर्सेंट दिमाग चला लिया करो मैं यहां तुम्हारा हाल चाल पूछने आया था कि तुम ठीक हो या नहीं और तुम मुझे अपनी फालतू की बकवास सुना रहीं हो
पूजा- सर एक दिन सिया ऑफिस क्या नहीं आयी आप तो उसके घर तक चले आए अगर ये दस पंद्रह दिन तक ना आए तो आप क्या करोगे
अभिषेक- कुछ नहीं में क्या करूंगा कुछ भी तो नहीं
इतना कह कर अभिषेक वहां से चला जाता है पूजा और सिया की बाते
सिया- यार ये कैसा इंसान था एक दिन ऑफिस ना जाने पर ये तो मेरे घर तक आ गया
पूजा- हाँ यार सोच इतना बड़ा आदमी जिससे मिलने के लिए लोग लाइन में खड़े होते हैं वो तुझ से खुद तेरे घर मिलने आया था इसका मतलब वो तुम्हें देखे बिना एक दिन नहीं रह सका देख सिया देख उस तुझसे प्यार हो गया है
सिया- क्या यही प्यार है
पूजा- हाँ हम किसी की परवाह बिना बजह नहीं करते हमारा कोई रिश्ता होता है तभी तो हम उसके पास जाते हैं
सिया- क्या प्यार करने वाले ही परवाह करते हैं परवाह तो इंसानियत के नाते भी की जा सकती हैं ये जरूरी तो नहीं कि हमारा किसी के साथ कोई रिश्ता हो तभी हम उसका हाल चाल पूछे हम ऐसे भी तो किसी का ध्यान रख सकते हैं
पूजा- अच्छा तो फिर इतने सारे लोग है दुनिया में और रोज ना जाने कितने बीमार होते हैं उनको देखने या फिर उनका हाल चाल पूछने तो अभिषेक नहीं जाता और ना तू जाती है
सिया- यार तेरी बाते मुझे सोचने पर मजबूर कर रहीं हैं
पूजा- हाँ सोच सोच मेरी बातों को ध्यान से सोच अभी तक तो वो तेरे घर आया है कल सपनों में भी आयेगा फिर दिल में और फिर तेरी जिंदगी में भी आ जाएगा
कुछ दिनों में सिया की तबीयत ठीक होती है और वो ऑफिस जाती है जाते ही वो अभिषेक से टकरा जाती है दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे हैं जैसे पलकों को झुकाना गुनाह है देखते देखते वो दोनों एक दूसरे में इतना खो जाते हैं कि आसपास नहीं देखते हैं और ऑफिस के सारे लोग उनके चारो तरफ खड़े होकर उन्हें देखने लगते हैं इतने में अभिषेक का फोन बजता है और उन दोनों का ध्यान लोगों पर जाता है दोनों अपने आस-पास इतने सारे लोगों को देख कर घबरा जाते हैं सिया सहमती है अभिषेक गुस्से में
अभिषेक- क्या हुआ तुम लोगों को और कोई काम नहीं है क्या जाओ जाकर अपना अपना काम करो, सारे लोग अपने अपने काम पर चले जाते हैं और अभिषेक सिया से उसकी तबीयत के बारे में पूछ कर एक जरूरी मीटिंग के लिए चला जाता है और जब तक वो अपनी मीटिंग खत्म करके आता है सिया ऑफिस से निकल जाती हैं वो सिया को देखने के लिए उसके घर के रास्ते पर जाता है लेकिन उसे सिया कहीं भी दिखाई नहीं देती हैं और वो इसलिए क्योंकि सिया तो पूजा के ऑफिस चली जाती हैं उसे लेने के लिए
सिया- hy पूजा
पूजा- hy सिया तू यहां कैसे
सिया- छुट्टी का time हो गया में तेरा कब से बाहर इंतजार कर रही थी तू नहीं आयी तो मैंने सोचा कि मैं ही जाकर तुझे ले आती हूँ इसलिए मैं आ गई
पूजा- चल अच्छा किया पर तुझे इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि आज जय सर आए हैं वो उन्होंने हमे एक्स्ट्रा काम दिया है
सिया- पर time तो खत्म हो गया ना तुम सबको अब चलना चाहिए अगर कोई काम बाकी है तो कल आकर पूरा कर लेना
सिया की बाते सुनकर पूजा उसे चुप होने का इशारा करती हैं
सिया- अरे मुझे चुप क्यों कर रही है कुछ गलत थोड़ी कहा है मेने सही तो कह रही हूँ
पूजा सिया को चुप करने की कोशिश इसलिए कर रही थी क्योंकि जय पीछे आकर सिया की बाते सुन रहा था
जय- अच्छा तो अब आप बताओं गी की किसे कहा कितना काम करना चाहिए
सिया- ऐसा तो नहीं कहा है मैंने, मैं तो बस इतना कह रही हूँ कि अब घर जाने का time हो गया है
जय- अच्छा तो यहां छुट्टी आपके हिसाब से होनी चाहिए
सिया- नहीं तो क्या आपके हिसाब से होनी चाहिए हो कोन आप मैं आप से तो बात कर ही नहीं रहीं हूँ फिर क्या जरूरत पड़ रही हैं आपको मेरे बीच मे बोलने की
पूजा- सिया चुप हो जा ये बॉस है हमारे
सिया- हाँ तो बॉस है तो क्या ये कहीं के शहंशाह नहीं है जो अपनी मर्जी से जिसको जब चाहे तब तक ऑफिस में रोक ले हर काम का एक समय होता है और तुम्हारे काम का समय पूरा हो गया है
जय- जय को सिया पर बहुत गुस्सा आता है, तुम समझती क्या हो खुद को
सिया- वहीं जो मैं हूँ
जय- क्या हो तुम
सिया- इंसान
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