
सिया जैसे ही अंदर जाती है अभिषेक उसे डाट ने के पूरे मूड में रहता है और सिया के अंदर आते ही
अभिषेक- आज तुम्हारे ऑफिस का दूसरा दिन है और तुम अभी से इतनी लेट आ रहीं हो तो पूरे महीने क्या करोगी हाँ
सिया- o हेलो मैं इतनी लेट थी नहीं वो तो आप ने मुझे लेट कर दिया
अभिषेक- what मैंने मैंने तुम्हें लेट किया और क्या मैं ये जान सकता हूँ कि मैंने आप को लेट कैसे किया है
सिया- ये जो बिना बजह आप ने मुझे ये कथा सुना दी ना इसे सुनते सुनते ही मैं लेट हो गई नहीं तो देखिये मेरी घड़ी में तो अभी 8 ही बजे है
अभिषेक- अच्छा तो मैं तुम्हें बता दूँ कि तुम्हारी घड़ी गलत है बिल्कुल तुम्हारी ही तरह अब 8 नहीं 10 बज चुके हैं समझी तुम
सिया- मैं कैसे मान लू मेरी घड़ी में तो अभी 8 ही बजे है
अभिषेक- तो तुम अपनी घड़ी के हिसाब से ही चलोगी
सिया- हाँ और कुछ, जाइए आप यहां से खुद को तो कोई काम है नहीं पर मुझे बहुत काम है अब आप जाओ यहां से और मुझे अपना काम करने दो
इतना कह कर सिया वहां से चली जाती हैं अभिषेक उसके बारे मे सोचता रहता है ये लड़की आखिर खुद को समझती क्या है मेरे ऑफिस में आकर मुझ से ही बहस करती रहती हैं
इधर जय अभिषेक से मिलने के लिए आता है
जय- अभिषेक कहा है
मेनेजर- माफ़ कीजिए वो तो अभी अभी निकल गए यहां से आप ने पहले क्यों नहीं कहा कि आप आ रहे हो मैं सर को रोक कर रखता
जय- कोई बात नहीं मैं उसके घर चला जाऊंगा पर तुम यह बताओ की वो डायरी बाली लड़की मिली क्या उसे
मेनेजर- सर वो पूरी कोशिश कर रहे हैं उसे ढूंढने की जैसे ही वो लड़की हमे मिलेगी हम आप को ख़बर कर देंगे
जय- अच्छा ठीक है मैं चलता हूँ और कोशिश करना की वो लड़की मुझे जल्दी मिले
" दोस्त कुछ ऐसे भी होते है जो अपने बन कर अपनों की ही पीठ में छुरा भोकते है कहने को तो जय और अभिषेक बहुत अच्छे दोस्त हैं लेकिन सच तो यह कुछ और ही है जो जय अपने दोस्त पर इतना भरोसा करता है वहीं दोस्त उस लड़की को जय से छिपा रहा हैं जिसकी उसे बहुत जरूरी है "
सिया ऑफिस से घर आते time पूजा से मिलती है और वो दोनों मंदिर जाती है
पूजा- क्या हुआ सिया अब तुझे अचानक मंदिर क्यों जाना है
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