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प.माँ
तुम हरो पीर हमारी
माते
हरो पीर हमारी
ह्रदय कलुषित
मन है मैला
चले ना पग मनुहारी
कोई जतन करिये
माते
हरो पीर हमारी १.
हृदय पिपासा
मन में निराशा
कदम बढ़ाएं
हरदम बाधा
करूँ विनती में
तुम्हे माते
हरो पीर हमारी २.
तन गन्दा
मन विषैला
दिल संताप में डूबा
करूँ वंदना में
तेरी माते
हरो पीर हमारी ३.
सब गए खो
भीड़ में
ढूंढूं अब किसे
जग में हम अकेले
सुधि अब लेहों
हमरी माते
हरो पीर हमारी ४.
तुमरी महिमा
तुम्हे ही सुनाऊँ
और किसे चित्त
लगाऊं
बछड़े हैं माँ तेरे
सुनो कातर
पुकार हमरी
माते
हरो पीर हमारी ५.
कवि फोरम
रचना
निरंजन.गौतम दत्त
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