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प.जिंदगी
क्या चीज़ है
जिंदगी
खट्टी क्या
कडुवी क्या
बस झेलनी है
बोध कराती
अपना अहसान
गुमान हमारा
ना स्वीकारे
चादर ओढ़े
उधार की
मोल.भाव करे
हमसे
ऊंच नीच
दुःख सुख
बस गम करे
रखे हमे बंधक
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