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जो ये इश्क़ है मियाँ,ज़ियादा या कम नहीं होता
पत्थर....पे उगी घास का कोई मौसम नहीं होता।
बाज़ार बनते इस दुनिया को देख लिया हमने
अब...रिश्ते...टूटें...या छूटें,कोई...ग़म नहीं होता।
पत्थर....पे उगी घास का कोई मौसम नहीं होता।
बाज़ार बनते इस दुनिया को देख लिया हमने
अब...रिश्ते...टूटें...या छूटें,कोई...ग़म नहीं होता।
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