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मानस की जात सबैएकै पहचानबौ (भाग-3)

Neeraj sharmaNeeraj sharma January 2, 2022
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मानस की जात सबैएकै पहचानबौ 
               धर्म-कब,क्यों और कैसे(भाग-3)
                 (नीरज शर्मा-9211017509)              

जारी है.....
                मानव ने समय के साथ चलते हुए अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति और इच्छा शक्ति से बहुत से आविष्कार एवं खोजे की।अब मानव आग जला सकता था,खेती करता था, पत्थर के हथियार और औजार बनाता एवं इस्तेमाल करता। मानव अब पशुपालन और जानबरो को काबू कर इस्तेमाल करना सीख चुका था।वो अब अलग-अलग जानवरों का अलग-अलग कार्यों के लिए इस्तेमाल करने लगा। जानवरों के इस्तेमाल ने मानव का जीवन काफी आसान कर दिया था। अब वो दूसरे लोगों के साथ सामान की अदला-बदली करता और अपनी हर जरूरत की पूर्ति करने लगा। इस तरह से मानव जीवन में व्यापार की शुरूआत हुई।अब  वो गुफाओं से निकल स्वनिर्मित मकानों में रहने लगा।मानव की बुद्धि के विकास के साथ उसका रहन-सहन भी ऊंचा उठ रहा था।अब मानवों का समूह जहां रहता।वो हर काम में एक दूसरे का सहयोग और मदद करने लगे।जिस जगह वो रहते वहां की  साफ-सफाई,पय जल की आपूर्ति, गन्दे पानी की निकासी, दूसरे मानव समूहों,सगंठनो और‌ जानवरों के हमलों से सुरक्षा ,कृषी आदि के कामों को सुचारू एंव कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए कार्यपालिका का गठन होने लगा जिनमें से एक मुखिया और कुछ लोगों का समूह इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति का ध्यान रखते,इन समूहों में रहने के नियम, परमपराएं और आचार संहिताए थी।सब को उनका पालन करना होता था। छोटे-छोटे मानव समूहों का एक बड़े समूह में विलय होने लगा।इन बड़े समूहों को कबीला या गांव कहा जाने लगा।आगे चल कर इन गांवों, कबीलों और नगरों के समूहों से अलग-अलग सभ्यताओं ने जन्म लिया। अब तक विश्व में प्राचीनतम सभ्यता सुमेर सभ्यता को माना जाता है पर लगातार चल रही शोध और अलग-अलग जगहों पर चल रही खुदाई में यह अब साफ होने लगा है कि भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की प्राचीनतम संस्कृति और सभ्यता है।मध्यप्रदेश के भीमबेटका में पाए गए 25 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र, नर्मदा घाटी में की गई खुदाई तथा मेहरगढ़ के अलावा कुछ पुरातत्वीय प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि भारत की भूमि आदिमानव की प्राचीनतम कर्मभूमि रही है। यहीं से मानव सभ्यता विश्व के अलग-अलग स्थानों पर जा कर बसी। प्रत्येक सभ्यता की खोज में कि गई शोधो और खुदाईयों में मिली मूर्तियों से यह बात स्पष्ट हो गई है कि इन सभ्यताओं में वैदिक धर्म की ही मान्यता थी।अब तक विश्व में भिन्न-भिन्न समय पर  340 से 350 धर्मों का उदय हुआ है। जिनमें से आज कुछ धर्म ही बचें है।बहुगिनती में धर्म पूर्णता विलुप्त हो गए या कुछ विलुप्तता के कगार पर हैं। बहुत सिमित गिनती में धर्म हैं जो उन्नति और प्रगति कर रहे हैं। विश्व में समय समय पर अलग अलग धर्मो का जन्म हुआ।मेरी यह कोशिश रहेगी कि ज्यादा से ज्यादा धर्मो की जानकारी इस लेख श्रृंखला द्वारा आप तक पहुंचाने की। मुख्यता हम इन धर्मों का आरंभिक काल, किसने आरंभ किया,किस की उपासना करते हैं,उनके मुख्य किरदारों की संक्षेप में जीवन यात्रा,उन धर्मो की शिक्षाएं और उनके पवित्र ग्रंथ, मुख्य त्योहार,जनसंख्या आदि पर प्राचीनतम से नवीनतम के क्रम में चर्चा करेंगे। 

सनातन धर्म
      ‌ सनातन का अर्थ होता है शाश्र्वत यानि हमेशा बना रहने वाला अर्थात जिसका आदि और अन्त ना हो।सनातन धर्म को विश्व में प्राचीनतम धर्म होने का गौरव प्राप्त है। विश्व के ज्यादातर प्रमुख पुरातत्व विशेषज्ञों, विद्वानों और इतिहास पण्डितो के अनुसार एक समय पृथ्वी पर ऐसा था जब सनातन धर्म पूरे विश्व में फैला हुआ था।आज सनातनधर्म अनुयायि बहुसंख्या में मुख्यता भारत, नेपाल,श्रीलंका,भूटान,फिजी,मोरिशियश, दक्षिणी अमेरिकन, मध्य पूर्वी एशिया के देशों में बसे हुए हैं।सनातन धर्म को एक लेख श्रृंखला या एक किताब में वर्णित कर पाना असम्भव है।सनातन धर्म साहित्य, संस्कृति,मान्यताओ, महान ग्रन्थो का अति विशाल महासागर है और यह लेख माला उस महासागर की एक बूंद के कण के सहस्त्र भाग के बराबर भी नहीं है। इसलिए यहां उन्हीं बातों की संक्षेप में चर्चा करेंगें जो अति आवश्यक हैं।सनातन धर्म को वैदिक धर्म और हिन्दू धर्म भी कहा जाता है। सनातन धर्म की मूल भावना को समझना चाहते हैं तो इस श्लोक का अर्थ समझ लें।                                             
         “अयं बंधुरयं नेति गणना लघुचेतसाम्
            उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्”
अर्थात- यह मेरा बंधु है वह मेरा बंधु नहीं है ऐसा विचार या भेदभाव छोटी चेतना वाले व्यक्ति करते हैं। उदार चरित्र के व्यक्ति संपूर्ण विश्व को ही परिवार मानते हैं ।                                               
                            सनातन धर्म में मूर्ति पूजा में दृढ़ मान्यता है।ये अपने अराध्य परमेश्वर को ईश्वर, भगवान, प्रभु,देव,देवी,देवता आदि नामों से पुकारते हैं।यह अपने अराध्य के लिए व्रत और यज्ञ हवन को बहुत ज्यादा अहमियत देते हैं।सनातन धर्म के मानने वाले पुनर्जनम पर बहुत विश्वास करते हैं। इस धर्म में कर्म और कर्म फल में प्रमुखता से विश्वास किया जाता है।इस धर्म मे अराध्य प्रभु की विधिवत ढंग से पूजा अर्चना की जाति है।हवन ,यज्ञ, व्रत और ध्यान साधना को विधीवत रूप से पूर्ण करने को प्रभु के दर्शन और प्रभु को प्रसन्न कर के मन चाहा वर पाने के लिए मुख्य स्रोत माना जाता है।इन में प्राकृति और प्राकृतिक संसाधनों कौ विशेष सम्मान दिया जाता है।कई वृक्षों, नदियों, पर्वतों और पहाड़ों को पूजा जाता है। यहां एक रोचक तथ्य आप लोगो के सामने रखना अनिवार्य समझता हूं वो यह कि साधारणतया हम सब ईश्वर, भगवान और देवता को एक ही या तीनों नामों का अर्थ एक ही मानते है। जब की तीनों के अर्थ अलग अलग हैं।जो कि एकाग्रचित्त होकर सोचने से सामने आ जाते हैं। चलिए देखते हैं।
ईश्वर - ईश्वर मूल‌ वाक्य अनशवर से बना है।अनशवर अर्थात जिस का कभी नाश ना हो यानि उसका कभी अन्त नही होता और ना ही उस का कभी आरम्भ होता अर्थात वो ब्रह्मांड से पहले भी था और ब्रह्मांड के अन्त के बाद भी रहेगा।
भगवान - भगवान‌ शब्द का जब हम संधी विशेद करते है तो सारा रहस्य खुल जाता है।
भ+ग+व+अ+न अर्थात पंच तत्वों से बना- भ=भूमि,ग=गगन,व=वायु,अ=अग्नि,न=नीर अर्थात पांच तत्वों से बना यानि वो मनुष्य की तरह धरती पर अवतरित होता है और अपना कार्य पूर्ण कर ने के पश्चात् इन्हीं पांच तत्वों में ही विलीन‌ हो जाते है। भगवान ईश्वरीय अंश होते हैं और संपूर्ण कला निपुण होते है ।वे हर ईश्वरिय शक्ति का अपनी इच्छा से उपयोग कर सकते हैं।
देवता - देवता मूल शब्द दिव्यता से बना है।देवता आलौकिक शक्तियों के स्वामी होते हैं।अलग अलग देवता ब्रह्मांड की अलग अलग क्रियाओ को व्यवस्थित ढंग से संचालित करते हैं।यह सभी स्वर्ग लोक या देव लोक में निवास करते हैं। इन्द्र देव को देवताओं का राजा माना जाता है।                                             
                    सनातन धर्म में काल खण्ड को चार युगों में विभाजित किया गया है।पहला सतयुग,दूसरा त्रेतायुग तीसरा द्वापरयुग और चौथा कलयुग। कलयुग के अंत में प्रलय आएगी और पृथ्वी का पूर्ण नाश हो जाएगा।कई युगों बाद पृथ्वी पर फिर से वनस्पति,पेड़,पौधे ,जीव, जन्तु , मानव का जन्म होगा और फिर से पहले युग से चौथे युग के अंत की तरफ का सफर शुरू हो जाएगा यानि आदि से अन्त की तरफ युगों का पहिया फिर से घुमने लगेगा।यह अन्तहीन चक्कर निरन्तर जारी था, जारी है और जारी रहेगा। सनातन धर्म को मुख्यता चार मत या सम्प्रदाय में बांटा गया है वैष्णव मत- इनमें मान्यता है की श्री विष्णु ही ईश्वर है सृष्टि का आदि और अन्त वही है। शैव मत- शैव मत के अनुयाई शिव को ईश्वर और सृष्टि का स्वामी मानते हैं।शाक्त मत- इस मत के लोग आदि शक्ति को ईश्वर एवंम ब्रह्माण्ड का स्वामी मानते हैं और स्मार्त मत- स्मार्त मत वाले उपरोक्त्त तीनों को ही ईश्वरीय रूप मानते हैं।उनका विश्वास है कि रूप अनेक परन्तु ईश्वर एक ही है।सनातन धर्म में तीन देवों को सर्वोच्च माना जाता है। श्री ब्रह्मा- ब्रह्मांड रचेता, श्री विष्णु-पालन करता और श्री महेश यानि शिव- संहार  करता। इन्हें त्रिमूर्ति भी कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार सृष्टि के प्रबंधन को व्यवस्थित एवं संचालन के लिए हर कार्य के लिए अलग-अलग देवता हैं। उदाहरण के तौर पर सूर्य देव, चन्द्र देव,पवन देव, वरूण देव, अग्नि देव आदि।सभी देवताओं ‌के स्वामी इन्द्र देव हैं।इस धर्म में गाय को विशेष स्थान प्राप्त है। गाय को मां का दर्जा दिया जाता है। गाय की सेवा को बहुत ही अच्छा कर्मफल देने वाला माना जाता है।सनातन धर्म समाज में चार वरण या जातियां हैं।ये चार जातियां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र हैं।   सनातन धर्म में प्रार्थना स्थल को मन्दिर कहा जाता है।  मन्दिर में सभी भगवान और देवी देवताओं की मूर्ति  रूप में या चित्रों के रूप में पूजा अर्चना की जाती है। भगवान शिव को मूर्ति, चित्रों और शिवलिंग रूप में पूजा जाता है। मन्दिर में हर भगवान की मूर्ति या शिवलिंग को वेदिक अनुष्ठान और धार्मिक मान्यताओं का पालन करते हुए ही स्थापित किया जाता है। मूर्ति स्थ

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