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हाथ की चंद लकीरे नही तेरा मुकद्दर,
कर्म ही तह करता क्या है तेरा मुकद्दर,
मिलती रहेगी पग पग तुझे हार की ठोकर,
ठोकरों से ही बनाता कर्मयोगी मुकद्दर।
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