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कभी बदतमीज़ी तो कभी बेबाकी से बोलते हो,
तुम सच बताओ,
तुम इश्क़ को किस तराज़ू पर तोलते हो!
मेरा कहना भी तुम्हें खल रहा है,
तो तुम अपना मुँह कैसे खोलते हो..
सुनो ज़रा धीरे से नाम लो मेरा
क्युकिं तुम जब भी बोलते,
बुरा ही तो बोलते हो!
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