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वो दिन याद आते हैं,
जब छोटी सी खट्टी ख्वाहिश के लिए,
हम इमली के पेड़ पर चढ़ा करते थे,
वो दिन याद आते हैं,
जब नन्हें कदमों से हम दूर,
वो प्रख्यात मंदिर का रास्ता तय करते थे,
वो दिन याद आता हैं,
जब सर्दियों में बोरसी की आंच तले,
जब छोटी सी खट्टी ख्वाहिश के लिए,
हम इमली के पेड़ पर चढ़ा करते थे,
वो दिन याद आते हैं,
जब नन्हें कदमों से हम दूर,
वो प्रख्यात मंदिर का रास्ता तय करते थे,
वो दिन याद आता हैं,
जब सर्दियों में बोरसी की आंच तले,
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