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दुनिया-जहाँ के रंजो-ग़म भुला सके वो मय नहीं बनी
मुकम्मल तमाम ख़्वाहिशें करा सके वो शय नहीं बनी
सरज़मी के सिवाय बहिश्त नहीं बन
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दुनिया-जहाँ के रंजो-ग़म भुला सके वो मय नहीं बनी
मुकम्मल तमाम ख़्वाहिशें करा सके वो शय नहीं बनी
सरज़मी के सिवाय बहिश्त नहीं बन
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