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उजालों से अपनी शिकस्त को अंधेरों को स्वीकारना पड़ता है
दीये की कांपती हुई लौ से तीरगी- ए-शब को हारना पड़ता है
डॉ.एन.आर. कस्वाँ #बशर
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दीये की कांपती हुई लौ से तीरगी- ए-शब को हारना पड़ता है
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