कैसे बताऊं...
मेरी व्यथा को
कौन सुनेगा
किससे बांटूंगी
अपनी संवेदना को
कण खण में
व्याप्त है
जब मुझे सहनु पडी
इतनी कठिन
विवशताएं..
कोई नहीं
सुनने
मुझे तसल्ली देने
क्या करूं
मैं अपनी वेदनाओं को
अंदर रखकर
भुगत रही हूं
दिन-ब- दिन
एक दृश्य जैसी
वह आकर
मुझे जगाता है
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