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हर पल रहती आपा धापी
रे मन ! तू बड़ा ही पापी।
तू गैरों के पीछे भागे
और अपनों से करता छल
रुक जा रे मूढ़ मना
कितनी गहरी ये दल दल
तूने भटक भटक कर सारी दुनिया नापी
रे मन ! तू बड़ा ही पापी ।
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