
Share0 Bookmarks 100 Reads0 Likes
सारे शहर से गुज़रा मैं, लेकिन
कोई भी सूरत पहचानी न मिली
संग जिसके खेला बचपन में
वो मुहब्बत की दीवानी न मिली
उससे मांगी किताब में मुझको
मुहब्बत की कोई निशानी न मिली
हर हर्फ पढ़ा गौर से किताब का
अपने लिए कोई कहानी न मिली
बड़ी देर उसके चेहरे को देखा पर
उसकी वो तस्वीर पुरानी न मिली
अरसे बाद उस दरिया में उतरा
लहरों में पहले सी रवानी न मिली
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments