
पांडवो के शौर्य एवं तेज का निज क्षय हुआ
कुटिल कपटी राजनीति जीतना दुर्जय हुआ
बहु सभ्यजन आलोक में विषद यह घटना घटी
धर्मवीर सानिध्य में जो पांच पापो में बंटी
न अपराध पांडवो का वर्णनों के योग्य है
न नीच कुरुओं की दशा किसी भांति शोभ्य है
पर पांच पापो के परे कहना अधिक असभ्य होगा
न इतिहास भूलेगा इसे, न भविष्य ही सुगम्य होगा
बहुभांती राज्य को मिले कृपा किसी भीष्म की
चाहे मिले आशीषता अनूपम तपों के भस्म की
वह हर प्रतिज्ञा अपराधिनी, जो लोकनीति के परे
निज धर्म रक्षण नहीं जहां गरिमा नारी की मरे
यही प्रथम पाप विनाश का आधार निर्मित कर रहा
उस देश का निश्चित मरण जो सहज मर्दन सह रहा
राज्य सीमा रहे सुरक्षित जब अंधराजा सजग हो
नहीं कोटि रक्षण कर सके जब नेत्र में निज भुजग हो
जब कुल गुरुओं की कृपा अपराध सह में लिप्त हो
शस्त्र विधा में निपुण हर द्रोण जब विक्षिप्त हो
यही त्रिपाप योग द्रोपदियों के मान के विपरीत होगा
किन्तु अंतिम पाप के सम न आतातीत होगा
यही विदुर नीति शोक में यों धराशाई हो जाएगी
तब धरती पर कहीं अवतरित कृपा शेषाशायी आयेगी
पंच पाप परिणाम में सफल होगा महाभारत
किंतु मूल में कबतक रहे पांचाली सभारत
Mukku
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