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कीचड़! हर बात को दिल से लगा कर, मन को अशांत करके, अपनी स्थिरता को ध्वस्त कर, उस पर प्रतिक्रिया देते हुए जब छपाक से उछल दूसरों के व्यक्तित्व पर छप जाता है तो मानो कीचड़ का जीवन सफल हो गया।
परन्तु यह स्वभाव विद्व जन को शोभा नहीं देता।
✍मुक्ता शर्मा त्रिपाठी
हिन्दी अध्यापिका
श इं ज सिं स मि स्कूल कोटला शर्फ़ बटाला
परन्तु यह स्वभाव विद्व जन को शोभा नहीं देता।
✍मुक्ता शर्मा त्रिपाठी
हिन्दी अध्यापिका
श इं ज सिं स मि स्कूल कोटला शर्फ़ बटाला
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