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दूसरों के ऊंचे मकान से जलता है आदमी
क्यों वक्त से पहले ही ढलता है आदमी
लगी सी रहती है भागदौड़ जिंदगी में
क्यों आज भी नींद मे चलता है आदमी
ये रुपया पैसा काम नही आएगा हमेशा
फिर क्यों गठरी ढो रहा है आदमी
मानवता के गुण खो गए है कहीं
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