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सूर्य घर को जा रहा है चलते-चलते
उतर आई साँझ देखो ढलते-ढलते
पंछियों की टोलियाँ जाती घरों को
थार की रेती परों पर मलते-मलते
मार खाकर पीठ पर अपने बड़ों की
हो गए बच्चे बड़े यूँ पलते-पलते
झूमता सँकरी गली में आ गया घर
इक शराबी ठोकरों से टलते-टलते
देहरी पर चढ़ गया व्याकुल अँधेरा
दे दिलासा दीप 'मोहन' जलते-जलते
:मोहन पुरी
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