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*विश्वास*
अंध विश्वास पर रहा पूर्ण विश्वास का पहरा,
करके विश्वास मैने उन्हीं पल को माना सुनहरा,
मुफलिसी में जीवन बीता फिर भी विश्वास रहा गहरा,
भोलेपन में बचपन बीता समझ में न आया ऐसा
धोखे का खेरा,
जीवन मे मेरे सदा रहा अंधेरा,
जीवन के हर ख्वाहिश से अपने ने खेल रहा खेला,
सूने जीवन को क्या समझाऊं,
अब कोई नहीं है मेरा अपना ना कोई है सपना#
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