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कुछ भी नहीं बन पाया,
तो मेरी क्या खता
मैने तो हर किताब मे
ढूढा तेरा पता ,
फिर भी ए जिंदगी तेरा,
मकसद ना पा सका
ढूढता रहा इधर -उधर
समझ ना पाया जीवन का फलसफा
जो बेपरवाह होकर जीवन को,
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