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कोई अपना ना रहा कोई सपना ना रहा,
यूं बेगाने हुए हम कोई सहारा न रहा
क्यूं भूल गये सब एक अजनबी की तरह,
जो अपने थे वो पराए हो गये,
एक दर्द जो पाया भूल अब तक ना पाया,
अब राह में कांटे है कोई किनारा न रहा,
कोई अपना ना रहा कोई सपना ना रहा।
यूं बेगाने हुए हम कोई सहारा ना रहा,
जो मसीहा था वही बेगाना बन बैठा,
जिनपर था भरोसा अपना वो गुनहगार कैसा,
हम सोच ना सके कल की बातें,
सदा झुठलाते रहे मन की बातें,
आज खुद से खुद को अजनवी रहा,
कोई अपना ना रहा कोई सपना ना रहा ,
यूं बेगाने हुए हम कोई सहारा न रहा।
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