
जिंदगी की इस आपाधापी में,
कब जिंदगी की सुबह से शाम हो गई,
पता ही नहीं चला।
कल तक जिन मैदानों में खेला करते थे,
आज वो मैदान नीलाम हो गए,
पता ही नहीं चला।
कब सपनों के लिए,
सपनों का घर छोड़ दिया पता ही नहीं चला।
रूह आज भी बचपन में अटकी,
बस शरीर जवान हो गया।
गांव से चला था,
कब शहर आ गया पता ही नहीं चला।
पैदल दौड़ने वाला बच्चा कब,
बाइक, कार चलाने लगा हूं पता ही नहीं चला।
जिंदगी की हर सांस जीने वाला,
कब जिंदगी जीना भूल गया, पता ही नहीं चला।
सो रहा था मां की गोद में चैन की नींद,
कब नींद उड़ गई पता ही नहीं चला।
सो रहा था मां की गोद में चैन की नींद,
कब नींद उड़ गई पता ही नहीं चला।
एक जमाना जब दोस्तों के साथ,
खूब हंसी ठिठोली किया करते थे,
अब कहां खो गए पता नहीं।
जिम्मेदारी के बोझ ने कब जिम्मेदार,
बना दिया , पता ही नहीं चला।
पूरे परिवार के साथ रहने वाले,
कब अकेले हो गए, पता ही नहीं चला।
मीलों का सफर कब तय कर लिया,
जिंदगी का सफर कब रुक गया,
पता ही नहीं चला।
MD ANEES QAMAR एमडी अनीस कमर
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments