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एक अधूरी तलाश

mayank sahumayank sahu June 19, 2022
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बुलबुला ही तो हूं

हर क्षण अनंतर

बहती अविरल

जीवन गंगा का

लेकर उभरा रंग

रूप अनगिनत

बहता चालू अध्वंगा सा


है वर्षों की ये काल यात्रा

उस सागर की तलाश में,

हूं अतृप्त, और जो पूरी

कर दे प्यास एक श्वास में


मेरा होना ही प्यास है,

दुख है , संघर्ष है ,

सुख की झुटी आस है

इस यात्रा में अर्जित भले

या बुरे सब संस्कार पास है

कलकत्ता वाले में भी

गौमुख वाले का निवास है


चट्टानों से टकराकर

टूटा , मिटा हूं ,

जन्मा हूं कई बार

व्यर्थ है ये आशा

समतल की ,

मैदानों की हर बार


ये उभरना ये मिटना

ये मिट के उभरने का प्रयास

है जन्मों की ये

एक अधूरी तलाश














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