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इंसानियत का दुश्मन है वो,इंसानों से जलता है
हाकिम ऐ शहर बड़ी नफरत से हमें कुचलता है
माना लाखों लश्कर हैं उस काफिर के साथ,मगर
हुक्म ऐ इलाही से ही हर जंग का रुख़ बदलता है
वो चिटियां हाथियों को भी मार देतीं हैं काट कर
हकीर समझकर जमाना पैरों से जिन्हें मसलता है
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