
Share1 Bookmarks 123 Reads0 Likes
इंसानियत का दुश्मन है वो,इंसानों से जलता है
हाकिम ऐ शहर बड़ी नफरत से हमें कुचलता है
माना लाखों लश्कर हैं उस काफिर के साथ,मगर
हुक्म ऐ इलाही से ही हर जंग का रुख़ बदलता है
वो चिटियां हाथियों को भी मार देतीं हैं काट कर
हकीर समझकर जमाना पैरों से जिन्हें मसलता है
आसान नही देख पाना आंखों को मुश्किल होती है
जिस झाड़ पर हो गिरगिट वैसा ही रंग बदलता है
खारे पानी से तबजाकर नमक के ढेर निकलते हैं
किसी लाश की तरह जब जिंदा आदमी गलता है
इतना आसान नही ऐ'आलम'दशरथ माझी हो जाना
पूरी जिंदगी खप जाती है एक रास्ता संभलता है
मारूफ आलम
©कापीराइट
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments