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चलता रहा ख्वाबों का कारवां, कि
बंदिशों से परे कहीं तो नूर होगा,
वाह रे खुदा जिस्म को साए की भी संगत न थी।
सुरमई भी छुप गई कहीं चिलमन में,
रौशनी को कायनात की भी बरकत न थी।
करता रहा चिराग से रौशन , कि
अंजान सफर में कहीं तो किन
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