ये गुस्ताखी हवा की है's image
Poetry1 min read

ये गुस्ताखी हवा की है

KAVI MANOJ PRAVEENKAVI MANOJ PRAVEEN June 22, 2022
Share0 Bookmarks 48301 Reads0 Likes
खता मेरी नहीं कोई
ये गुस्ताखी हवा की है
जलाई थी शमा मैंने
हवाओं ने बुझा दी है

मिलने आई थी बुलबुल
चमन से छिप-छिपा कर के
कोई भी देख ना पाए
वो आई बच-बचा कर क

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts