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ये गुस्ताखी हवा की है

KAVI MANOJ PRAVEENKAVI MANOJ PRAVEEN June 22, 2022
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खता मेरी नहीं कोई
ये गुस्ताखी हवा की है
जलाई थी शमा मैंने
हवाओं ने बुझा दी है

मिलने आई थी बुलबुल
चमन से छिप-छिपा कर के
कोई भी देख ना पाए
वो आई बच-बचा कर के
खता इसमें नहीं गुल की
है गुस्ताखी बहारों की
समेटा गुल ने तेरी खुशबू
बहारों ने फैला दी है 

     Manoj Mishra

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