
Share0 Bookmarks 81 Reads0 Likes
मोहब्बत तन से ना हो के
मोहब्बत मन से होते हैं
बिछड़ते है सनम से जब
तो ये दिन-रात रोते है।
मोहब्बत रूप ना देखें
मोहब्बत धूप में तपते है
ये अपने प्यार के खातिर
जहां के जुल्म सहते हैं।
मोहब्बत अंजाम ना सोचे
मोहब्बत इजहार करते है
सनम की बेवफाई का
ये गम चुपचाप सहते है।
मनोज प्रवीण
मोहब्बत मन से होते हैं
बिछड़ते है सनम से जब
तो ये दिन-रात रोते है।
मोहब्बत रूप ना देखें
मोहब्बत धूप में तपते है
ये अपने प्यार के खातिर
जहां के जुल्म सहते हैं।
मोहब्बत अंजाम ना सोचे
मोहब्बत इजहार करते है
सनम की बेवफाई का
ये गम चुपचाप सहते है।
मनोज प्रवीण
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments