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बिछड़ कर तुमसे ऐ हमदम
न यूं दिन रात हम रोते
मेरी महफिल भी सज जाती
अगर तुम साथ में होते
मैं पतझड़ हूं बहारों का
यहां यहां वीरानियां बसती
अंधेरों से घिरा जीवन
यहां सुबह नहीं होती
अंधेरे छंट गए होते
अगर तुम साथ में होते
बदलते हैं सदा मौसम
नजारे भी बदलते हैं
सितारे मेरी किस्मत के
सदा गर्दिश में रहते हैं
सितारे भी बदल जाते
अगर तुम साथ में होते हैं
बिछड़ कर तुमसे ऐ हमदम
न यूं दिन रात हम रोते
यादों के समंदर में
मै अक्सर डूब जाता हूं
निकलने की कोशिश में
मै गहराई में जाता हूं
समंदर को सुखा देते
अगर तुम साथ में होते
बिछड़ कर तुमसे ऐ हमदम
न यूं दिन रात हम रोते हैं
ये रुसवाई नहीं मेरी
न तेरी बेवफाई है
कसम थी ये मोहब्बत की
जिसे जां दे निभाई है
जहां से यूं नहीं जाते
अगर तुम साथ में होते
बिछड़ कर तुमसे है हमदम
न यूं दिन रात हम रोते हैं
मनोज मिश्र
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