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पितृ-स्मृति
आज पिता की याद सताती, बचपन में रह रह के रुलाती।
कर जोरे और करें नमन ।।
मेरे जनक मेरे पिताजी।।
याद आता है वो सुबह का उठना, 'उनके संग वो दौड़ के चलना।
आओ करे उनको नमन ।।
मेरे जनक मेरे पिताजी।।
बचपन में वो दूर से आना ,टीन भर-भर कर घी लाना।।
खूब समौसा, कचौड़ी खिलाना और खिलाते हमे गुलाब जामुन।।मेरे जनक मेरे पिता जी
खेत, कुओं पर हम जाते अपने पुरखों को हम मनाते।
खूब पुआ और चटख चढ़ाते और चढ़ाते तुलसी व जल।।
मेरे जनक मेरे पिता जी
बाग घूमने खेतों पर जाते,खूब वाल और होरा खाते।
मूंगफली हमखूब भुनाते,
आमों के मौसम में आम, खाकर, खाते हम जामुन।।मेरे जनक मेरे पिता जी
पढ़ने की खूब ललक जगाते।
खूब सारे खेल खिलाते, कभी ताश, कभी चौसर लाते, कभी खेलते हम कैरम ।।मेरे जनक मेरे पिता जी
ढेर सारे कपड़े लाते, कभी जींस, कभी कुर्ता लाते।
खूब किताबें पढ़ने लाते,
और पढ़ाते हमें रामायण ।।मेरे जनक मेरे पिता जी
असाध्य रोग से लड़ते देखे, हमेशा मैने हंसते देखे
कभी नहीं मैंने चिंतित देखे, कभी हार ना मानते देखे ,देखा हंसता चेहरा, और देखी वही मुस्कान।।मेरे जनक मेरे पिता जी
लोगों का व्यवहार भी देखा. कभी गलत ना बोले देखा।
हमेशा लोगों से हसके बोले।
कभी ना वो झूठ बोले करते हमेशा दृढ़ संकल्प।।मेरे जनक मेरे पिता जी
आज हमारे पास नहीं है पर हमसे वो दूर नहीं है।।
दिल में हमेशा बसते रहते।
आशीष हमेशा देते रहते।।
शब्द नहीं है शब्द कोष में।
मनुष्य ही नहीं उनको साधु भी करते थे नमन।।
मेरे जनक मेरे पिताजी
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