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लिख रहा हूँ आज फिर मन ,अनमने मन से |
अनमने मन से भी मजाक भरे तन से भी॥
मन का क्या घोर धनघोर उदास् कभी भी, तन का क्या हमेशा उसी तरह तरह का ही ॥
मन की छाया केवल आँखों से दिखती है। शब्दों से घुल मिलकर कर झर झराती बहती है।
तन का क्या हंसा हंसा नही हसां नहीं हँसा।
लेकिन दिखा बैसा ही जैसा है बैसा ||
तन में तोआखें और जुवान मन की
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