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स्त्री का प्रेम
भावना है समर्पण की,
सबकुछ केवल अर्पण की,
माँगना ना चाहें कुछ भी,
केवल बदले में कुछ पल,
जो हों बिलकुल निश्छल।
जैसे अम्बर है अनंत,
और सागर का ना कोई अंत,
मन भी उसका इसी प्रकार,
करता सदा ही प्रेम अपार।
ना बंधे तुमको किसी डोर से,
ना रोके तुमको किसी छोर से,
उन्मुक्त गगन के पंछी की तरह,
सुख पाती तुमको सुखी देखकर।
समय के गर्भ में जो भी हो,
कभी किसी ने देखा
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