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ज़मीं से बँधना
मजबूरी दरख्त की
वर्ना कौन जहां में
आगे बढ़ना न चाहे
हर दम भटकना
बेबसी लहर की
वर्ना कौन जीवन में
ठहराव न चाहे
मजबूरियों की बेबसी
सबके साथ है
वर्ना कौन जीवन में
परिवर्तन न चाहे ।
मं शर्मा (रज़ा)
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