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सत्य का नहीं भान तुझे

असत्य का मत गुणगान कर

मोह माया सब मिथ्या है

बस ईश्वर का तू ध्यान कर


पाप पुण्य के फेर में पड़ के

दिल को मत हलकान कर

कुकर्मों का पश्चात्ताप है तो

चरित्र का पुनर्उत्थान कर ।



मं शर्मा(रज़ा)

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