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मैं सुख में दुख में
धूप में छाँव में
एकसा रहना चाहता हूँ
तुमसा होना चाहता हूँ
जीवन में अभाव नहीं
फिर भी ठहराव नहीं
कुछ कमी है बाकी
तुम सा फिर भी नहीं।
मं शर्मा (रज़ा)
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मैं सुख में दुख में
धूप में छाँव में
एकसा रहना चाहता हूँ
तुमसा होना चाहता हूँ
जीवन में अभाव नहीं
फिर भी ठहराव नहीं
कुछ कमी है बाकी
तुम सा फिर भी नहीं।
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