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जाड़ों की ठिठुरन ने एकदिन
अलाव की तपिश से पूछा
किस बात का गुमां तुझको
किस बात का अहंकार है
चार दिन की पूछ है तेरी
चार दिन का सत्कार है
गर्म चाय की चुस्कियों का
ठिठुरन में ही स्वाद है ।
मं शर्मा (रज़ा)
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