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राह तकत अंखियां पथराईं
पर तुम अजहुँ न लौटे
दिन महीने साल बीते
नयना अँसुवन से रीते
ब्रज के सक
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राह तकत अंखियां पथराईं
पर तुम अजहुँ न लौटे
दिन महीने साल बीते
नयना अँसुवन से रीते
ब्रज के सक
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