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राह तकत अंखियां पथराईं
पर तुम अजहुँ न लौटे
दिन महीने साल बीते
नयना अँसुवन से रीते
ब्रज के सकल नर और नारी
ग्वाल बाल और महतारी
तेरी याद ने सताये भारी
तोको याद न आई हमारी।
मं शर्मा (रज़ा)
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