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सर्दी में ठिठुर गई है रात
तारों से नहीं होती है बात
कोहरे का फैला है जाल
क्यों ना जला लेवें अलाव
हाथ को नहीं सुहाता हाथ
चाँद भी नज़र न आया आज
लंबी गुज़रेगी ये सर्दी की रात
जाने कब होने देगी प्रभात।
मं शर्मा( रज़ा)
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