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सर्दी में ठिठुर गई है रात
तारों से नहीं होती है बात
कोहरे का फैला है जाल
क्यों ना जला लेवें अलाव
हाथ को नहीं सुहाता हाथ<
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सर्दी में ठिठुर गई है रात
तारों से नहीं होती है बात
कोहरे का फैला है जाल
क्यों ना जला लेवें अलाव
हाथ को नहीं सुहाता हाथ<
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