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लहरों की बेचैनी का सबब न पूछ
रखे हैं ज़हन में तूफान छिपा कर
आज समुंदर फिर खारा हुआ है
कल रोया है फिर कोई जी भरकर।
मं शर्मा (रज़ा)
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लहरों की बेचैनी का सबब न पूछ
रखे हैं ज़हन में तूफान छिपा कर
आज समुंदर फिर खारा हुआ है
कल रोया है फिर कोई जी भरकर।
मं शर्मा (रज़ा)
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