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रोशनी पुकारती थी
मैं उस ओर बढ़ चला
लगा हसीन हर नज़ारा
मैं जिस ओर भी चला
अंधेरे डराते थे बहुत
मैं डर पीछे छोड़ चला
बहुत सवाल पूछते थे
सबको जवाब दे चला।
मं शर्मा (रज़ा)
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रोशनी पुकारती थी
मैं उस ओर बढ़ चला
लगा हसीन हर नज़ारा
मैं जिस ओर भी चला
अंधेरे डराते थे बहुत
मैं डर पीछे छोड़ चला
बहुत सवाल पूछते थे
सबको जवाब दे चला।
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