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कह देंगे एकदिन हकीकत
टालेंगे कितने दिन फजीहत
पर्दे हैं दीवार नहीं है
सहने की भी म्याद बनी है
तहज़ीब के प्रतीक थे पर्दे
विकृत भौतिकता दरशा रहे हैं
जाने क्या छिपा रहे थे
आज खुद बेपरदा हो रहे हैं ।
म शर्मा (रज़ा)
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