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न दिवस देखे न शाम

न वर्षा देखे न घाम

मन बावरा फिरे ब्रज में

लेकर उसका पैगाम


गली गली में आनंद छाया

कान्हा का संदेश आया

तुम इतने कठोर हुए क्यों

इतने दिनों में ध्यान लाया।



मं शर्मा (रज़ा)

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