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मनभावन उद्गार सी
एक पंखुड़ी गुलाब की
अधरों पर जैसे कोई
मुस्कान हो विराजती
संग जीने मरने के
आजीवन अनुबंध सी
आरती का दीया कोई
मंदिर में उतारती ।
मं शर्मा (रज़ा)
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मनभावन उद्गार सी
एक पंखुड़ी गुलाब की
अधरों पर जैसे कोई
मुस्कान हो विराजती
संग जीने मरने के
आजीवन अनुबंध सी
आरती का दीया कोई
मंदिर में उतारती ।
मं शर्मा (रज़ा)
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