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झूमती हवाओं से

घिरती घटाओं से

डगमगाती नावों से

कुछ कहना था


उड़ती पतंगों से

उठती तरंगों से

मन की उमंगों से

कुछ कहना था


अनकही बातों को

मेरे जजबातों को

तुम ही समझ लो

मुझे ये कहना था।


मं शर्मा( रज़ा)

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