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कर्म के नाम खत आया है
किस्मत के हवाले से
कब तक ऐसे जिंदा रहेगा
तू मेरे निवाले पे
कैसे तेरी गैरत जागेगी
यूँ बैठ के खाने से
जीवन नैया पार लगेगी
तेरे पतवार चलाने से।
मं शर्मा( रज़ा)
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