खिड़कियाँ's image
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अश्क धो देते हैं

रंजिशें सारी

यकीं न हो तो

बारिशों से पूछ लो


वक्त भुला देता है

यादें सारी

फकत जुमले नहीं हैं

दिलजलों से पूछ लो


कौन गुज़रता रहा

तेरी गली से होकर

कभी अपने घर की

खिड़कियों से पूछ लो।



मं शर्मा( रज़ा)

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