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उलझे थे धागे
उलझन भी उनकी
टूटे थे धागे
कमसिनी उनकी
कटी थी पतंग
बिन खता की
सज़ा भी मिली
किसी के किए की।
मं शर्मा (रज़ा)
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उलझे थे धागे
उलझन भी उनकी
टूटे थे धागे
कमसिनी उनकी
कटी थी पतंग
बिन खता की
सज़ा भी मिली
किसी के किए की।
मं शर्मा (रज़ा)
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