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कभी विवाह निमंत्रण
कभी शोक समाचार है
जीत का प्रमाण कभी
दंड का फरमान है
हल्केपन का सानी नहीं
पतंग जैसी परवाज़ है
नोट बनके छ्प जाए तो
कदमों में संसार है
कागज़ी हैं लोग यहाँ
कागज़ की औकात है
कागज़ के कंधों पर
चल रहा कारोबार है ।
मं शर्मा (रज़ा)
#स्वरचित
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