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करवट बदल बदल कर रात फिर
नींदों का रास्ता देखती रह गई
उजालों में जिनको चाहा न देखना
अंधेरों में उनके पहलू में बैठे रह गए ।
मं शर्मा( रज़ा)
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करवट बदल बदल कर रात फिर
नींदों का रास्ता देखती रह गई
उजालों में जिनको चाहा न देखना
अंधेरों में उनके पहलू में बैठे रह गए ।
मं शर्मा( रज़ा)
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